पलामू लोकसभा : पिछले चुनाव में भाजपा ने राजद को 4 लाख 77 हजार 509 वोट से शिकस्त दी थी : तो इस बार का रिजल्ट क्या सचमुच अप्रत्याशित हो जाएगा

पलामू लोकसभा : पिछले चुनाव में भाजपा ने राजद को 4 लाख 77 हजार 509 वोट से शिकस्त दी थी : तो इस बार का रिजल्ट क्या सचमुच अप्रत्याशित हो जाएगा

-- अरूण कुमार सिंह
पलामू । यहां 13 मई को वोटिंग होगी। अभी तक के अनुमान और आकलन के मुताबिक सीधी लड़ाई भाजपा और राजद के बीच है । पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा इस बार बसपा से चुनाव लड़ते हुए लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं । पहले की तरह इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी कोई कोण बनाने अथवा खुद के लिए विशेष चर्चा पैदा करने में अभी तक कामयाब होंगे अथवा नहीं, यह आनेवाले दो दिनों में बिल्कुल साफ हो जाएगा ।

यह थी पिछले लोकसभा की तस्वीर

2019 के लोकसभा चुनाव में विष्णु दयाल राम को पलामू लोकसभा के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी । उन्होंने राजद प्रत्याशी घूरन राम को 4,77,509 वोट के अंतर से  हराया था । इस चुनाव में भाजपा को कुल 7,55,559 वोट और राजद को 2,78,053 वोट मिले थे ।
इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विष्णु दयाल राम को डाल्टनगंज विधानसभा क्षेत्र में 1,45,935 वोट, विश्रामपुर में 1,18,583 वोट, छतरपुर में 1,00,026 वोट,  हुसैनाबाद में 94,858 वोट, गढ़वा में 1,37,947 वोट और भवनाथपुर में भाजपा को 1,55,791 वोट मिले थे मिले थे ।
जबकि राजद प्रत्याशी घूरन राम को उक्त चुनाव में डाल्टनगंज विधानसभा क्षेत्र से 46,842 वोट, विश्रामपुर से 39,379 वोट, छतरपुर से 39,565 वोट, हुसैनाबाद से 39,410 वोट, गढ़वा से 60,694 वोट और भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से 51,077 वोट मिले थे ।

पलामू के विधानसभाओं का चुनावी गणित समझिये, सभी विधायकों की इज्जत दांव पर लगी है

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व पलामू लोकसभा क्षेत्र के छह‌ विधानसभा - डाल्टनगंज, विश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर में से चार विस क्षेत्र- डाल्टनगंज, विश्रामपुर, छतरपुर और भवनाथपुर में भाजपा के विधायक हैं । हालात यह है कि पलामू लोकसभा क्षेत्र से नामांकन तो बीडी राम ने किया है लेकिन अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव यही विधायक लड़ रहे हैं । सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है । सभी को इस बात का भी डर सता रहा होगा कि अगर वे अपने विधानसभा क्षेत्र में हारे अथवा भाजपा का प्रदर्शन उनके विस क्षेत्र में 2019 से खराब रहा तो आनेवाले विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना मुश्किल हो जाएगा । 'करो या मरो' वाली इस स्थिति में हर विधायक अपना जोर लगा रहे हैं । वहीं, हुसैनाबाद पर एनसीपी के विधायक हैं जो फिलवक्त एनडीए के साथ हैं । उनके दो चुनावी प्रतिद्वंद्वियों में से एक भाजपा के ही साथ हैं । सिर्फ एक सीट (गढ़वा) पर झामुमो का कब्जा है जहां वर्तमान सरकार में मंत्री मिथिलेश ठाकुर विधायक हैं ।

तो, फिर आखिर राजद को क्यों है जीत का भरोसा... ?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए राजद और इंडिया गठबंधन के नेताओं से बात करने के बाद ये तथ्य सामने आये - राजद और इंडिया गठबंधन के नेताओं का मानना है कि मूल रूप से पलामू की रहने वाली ममता भूईयां को स्थानीय होने का लाभ मिलेगा । चूंकि वह भूईयां जाति से आती हैं इसलिए भूईयां जाति उनको वोट करेगी । इन नेताओं का कहना है कि पिछली दफा के मुकाबले इस बार सत्ता पक्ष के लिए एंटी इनकमबैक्सी फैक्टर कुछ अधिक है जिसका फायदा मिलने की उम्मीद राजद खेमे को है । गठबंधन के नेताओं का यह भी कहना है कि इस बार कुछ स्वर्ण वोटर बीजेपी से नाराज हैं और पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी चतरा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो राजद कुछ स्वर्ण वोटों की उम्मीद किये बैठी है । उनका यह भी कहना है कि इस बार यादव और मुस्लिम वोटर पूरी तरह से राजद खेमे में दिख रहे हैं । इनके वोट में बिखराव नहीं होने और भूईयां जाति का कंडीडेट होने के कारण भूईयां वोटों पर उसका अटूट भरोसा है । राजद नेताओं का कहना है कि पलामू की बदहाली, पिछड़ापन, पलायन और अन्य समस्याओं के जस का तस रहना लोगों को उन्हें वोट करने के लिए प्रेरित करेगा ।

भाजपा को क्यों उम्मीद है चुनाव जीतने की ...?

भाजपा के नेताओं का कहना है कि मोदी नाम और राष्ट्रवाद पर वे फिर चुनाव जीतेंगे । कहा कि पूर्व डीजीपी रहे वीडी राम ने अपने पहले पांच वर्षों के कार्यकाल में अपनी छवि पर दाग लगने नहीं दिया । जनता के बीच रहे । झूठा आश्वासन और राजनीतिक बयानबाजी से दूरी बनाए रखा । संसद में उनकी उपस्थिति (89%) जोरदार रही । उन्होंने 79 वाद-विवादों में भाग लिया, 317 प्रश्न पूछे । उनके कार्यकाल में एनएच 98 और 75 की सड़क फोरलेन हुई और अन्य सड़कें फोरलेन हो रही है । भाजपा खेमे का मानना है कि हर बूथ पर, हर गांव और हर घर में उनके कार्यकर्ता हैं इसलिए उनकी जीत पक्की है । पिछले चुनाव में करीब पौने पांच लाख वोटों का अंतर बताकर भाजपा नेता कहते हैं कि इस चुनाव में भी स्थितियां जस की तस हैं । बहुत होगा तो जीत का अंतर कुछ कम होगा ।

क्या है मतदाताओं का मिजाज ?

मतदाताओं का मिजाज समझ पाना पहले भी आसान नहीं था और इस बार भी नहीं है । इस चुनावी परिदृश्य में एक चीज जो साफ तौर पर दिख रही है वह यह कि इस बार राजनीतिक खेमे में जातियों का जिस तरह से ध्रुवीकरण हुआ है वह 2000-2010 के बीच संपन्न हुये चुनावों की याद दिला रहा है । इस बार 'साईलेंट मतदाता खेमा' भी मुखर है । लेकिन ग्रामीण मतदाता चुनाव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं । इन सब स्थितियों के बीच मतदान के बाद ही पता चलेगा कि यह चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है !