यहां घोरान ही खा रहे खेत :  पलामू में जंगल पहाड़ उजड़वाने में वन विभाग का और अवैध खनन करवाने में खनन विभाग का हाथ : युद्ध

यहां घोरान ही खा रहे खेत :  पलामू में जंगल पहाड़ उजड़वाने में वन विभाग का और अवैध खनन करवाने में खनन विभाग का हाथ : युद्ध

बिना किसी फंडिंग के पिछले एक युग से सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय 'युद्ध' नामक संस्था ने पलामू में संबद्ध सर्वे के बाद कहा है कि यहां घोरान ही खेत खा रहे हैं । संस्था के संयोजक अम्बिका सिंह का कहना है कि जिन विभागों को सुरक्षा का दायित्व है, वही छल कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि पलामू में जंगल उजड़वाने, वनक्षेत्र की पहाड़ियों को नेस्तनाबूद होने देने जैसे कुकृत्य में वन विभाग की सबसे बड़ी भूमिका है । इसी प्रकार बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध खनन, अवैध क्रसर संचालन में सबसे बड़ी भूमिका खनन विभाग की है । उन्होंने कहा कि कभी बिल्कुल शांत, स्वच्छ और प्रदूषण विहीन रहे पलामू के छतरपुर, चैनपुर, पाटन समेत कई इलाके अब क्रसर और पत्थर माईंस के खनन के बाद प्रदूषित हो चुके हैं । इस प्रदूषण के लिए सबसे बड़ी भूमिका प्रदूषण विभाग की है । उन्होंने कहा कि संस्था ने जो संबद्ध सर्वे किया है, वह सर्वे रिपोर्ट सीधे एनजीटी को भेजकर कार्रवाई की मांग की जाएगी । यदि तब भी सुनवाई नहीं हुई तो जनहित याचिका दायर किया जाएगा ।

यह है सर्वे रिपोर्ट की मुख्य बातें

सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि छतरपुर अनुमंडल क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों में करीब तीन दर्जन अवैध पत्थर खनन माईंस चलाये जा रहे हैं । इनमें दो दर्जन क्रसर और माईंस वनक्षेत्र में या वन क्षेत्र की सीमा से सटकर वन, खनन और अन्य संबद्ध विभागों के अधिकारियों की मिली भगत से चलाये जा रहे हैं । पिछले एक दशक में करीब दस लाख बड़े पौधों की अवैध कटाई हुई है । 95% माईंस और क्रसर प्रदूषण मुक्त होने की अहर्ता पूरी नहीं करते ।

छतरपुर एसडीओ ने भी वन क्षेत्र और उसकी सीमा से क्रसरों का उठाया था मुद्दा

छतरपुर एसडीओ एनके गुप्ता ने वनों के क्षेत्र पदाधिकारी, छतरपुर (पूर्वी) और छतरपुर (पश्चिमी) को पत्रांक - 325, दिनांक- 24-02-21 को एक पत्र वनों के निकट संचालित क्रसर मशीनों को बन्द करने के संबंध में लिखा था । इस पत्र में एसडीओ की ओर से लिखा गया था कि - "उपर्युक्त विषयक क्षेत्र भ्रमण के क्रम में देखा गया है कि अनेक
क्रसर वनक्षेत्र के निकट या वनक्षेत्र में संचालित हैं । उनमें भंडारित पत्थर किसी खनन माईंस के नहीं होकर वनों से उठाये गये प्रतीत होते हैं। ऐसे क्रसर द्वारा लगातार वन पत्थरों का प्रयोग करने की संभावना से इंकार नहीं
किया जा सकता है । ऐसे क्रसरों को वन एवं पर्यावरण हित में बन्द किया जाना आवश्यक है । अतः आप नीचे दिये व अन्य क्रसरों की स्थलीय जांच कर तीन दिनों में स्पष्ट करें कि :- क्या ये वन प्रतिबंधित क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं ? क्या ये वन पत्थरों का प्रयोग कर रहे हैं ?" उन्होंने यह भी लिखा था कि जांच में विलंब होने पर साक्ष्य नष्ट किये जा सकते हैं । एसडीओ ने नाम पता के साथ ऐसे 22 क्रसरों का जिक्र किया था । लेकिन एसडीओ के उक्त पत्र पर आजतक न को कोई जांच हुई, न कार्रवाई ।

48 क्रसरों की जांच और कार्रवाई के लिए पत्र निकला और अचानक सभी ने चुप्पी साध ली

पलामू जिले के छतरपुर अनुमंडल अंतर्गत और सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर संचालित स्टोन क्रेशर संचालकों के विरुद्ध कार्रवाई के प्रति अधिकारियों ने मौन साध लिया है। इलाके में दर्जनों अवैध क्रसर चल रहे हैं, जो अवैध खनन पर आधारित हैं । वन खनिज का प्रयोग
धड़ल्ले से जारी है। किन्तु इसकी जांच नहीं होने से सरकार को लाखों ,करोड़ों रुपए राजस्व की क्षति हो रही है । पिछले दिनों छतरपुर एसडीओ नरेन्द्र कुमार गुप्ता ने ऐसे 48 क्रसरों पर त्वरित कार्रवाई के लिए सम्बन्धित क्षेत्रों के अधिकारियों को पत्राचार किया था। जिसमें हरिहरगंज के 25 और छतरपुर के 23 क्रसर की जांच व कार्रवाई का जिक्र किया गया था। यह पत्र जारी हुए एक पखवारा से अधिक हो गया लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई । इससे अवैध क्रसर संचालकों के हौसले बुलंद हैं ।

सीओ-एसडीओ की रिपोर्ट के बाद भी अवैध क्रसर संचालकों पर कार्रवाई नहीं

पिछले वर्ष छतरपुर एसडीओ ने छतरपुर के मुरूमदाग और बजकोमा में 10 क्रसरों के अवैध संचालन की रिपोर्ट खनन एवं अन्य पदाधिकारियों को देते हुए इनकी जांच कर इन्हें ध्वस्त एवं अन्य कानूनी कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था । इस पत्र पर भी न तो किसी संबद्ध अधिकारी ने संज्ञान लिया, न जांच हुई, न कार्रवाई ।

पिछले वर्ष बंधु तिर्की ने भी उठाया था वनों की कटाई का  मामला

पिछले दिनों पलामू आये पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक बंधु तिर्की ने पलामू के वन प्रमंडल पदाधिकारी और वन संरक्षक को निशाने पर लेते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश के 6 महीने बाद भी इनपर एफआईआर क्यों नहीं हुआ ? इन्हें कौन बचा रहा है ? उन्होंने कहा था कि उक्त दोनों पदाधिकारियों के पदस्थापन के बाद मेदिनीनगर जेलहाता वन परिसर से केंदु पत्ता लदा ट्रक गायब हो जाता है । चैनपुर के हरिनामांड खैर प्लांटेशन से 236 से अधिक खैर के पेड़ काट लिये जाते हैं । पांकी के अंदाग जंगल से 380 और मनातू के रंगेया जंगल से करीब 500 पेड़ों की कटाई हो जाती है । तब भी इनपर कार्रवाई न होना समझ से परे है ।

ऐसे दर्जनों मामले हैं । छतरपुर में पिछले एक साल से घूम घूमकर जंगल कटवाने वाला और पहाड़ तुड़वाने वाला जंगल विभाग का एक चर्चित सिपाही बड़े ही शान से वर्दी पहनकर अब भी घूमता है । तो, मान लीजिए कि यहां के घोरान ही खेत खा रहे हैं और फिलवक्त इनसे त्रस्त धरती और आम लोगों को छुटकारा मिलने के आसार नहीं के बराबर ही हैं ।