17 सितंबर को ही क्यों होती है भगवान विश्वकर्मा की पूजा : क्या सचमुच इसी तारीख को विश्वकर्मा जयंती है

Why Lord Vishwakarma is worshiped only on 17th September: Is Vishwakarma Jayanti really on this date.

17 सितंबर को ही क्यों होती है भगवान विश्वकर्मा की पूजा : क्या सचमुच इसी तारीख को विश्वकर्मा जयंती है


-- अरूण कुमार सिंह
-- 17 सितंबर 2021

मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन मास की कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था । दूसरी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भाद्र मास की अंतिम तिथि को हुआ था । इन दोनों मान्यताओं के मुताबिक हर वर्ष 17 सितंबर की तिथि को ही भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनायी जाए, यह बात कुछ अजीब सी लगती है ।

जानकारों का कहना है कि विश्वकर्मा पूजा की तिथि सूर्य पारगमन के आधार पर तय की गयी है । यह पर्व सोरवर्ष की कन्या संर्काति में प्रतिवर्ष 17 सितम्बर को इसी आधार पर मनाया जाता है । वैसे, अपने देश के अलग-अलग भूभागों में भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर), कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा), भाद्रपद पंचमी (अंगिरा जयन्ति) मई दिवस आदि तिथियों पर भी विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है ।

"माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ। अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥"

धर्मशास्त्र भी माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंति बता रहे है। अतः अन्य दिवस भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना व महोत्सव दिवस के रूप मे मनाये जाते हैं । इसी तरह भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती पर भी विद्वानों में मतभेद है ।

कौन थे भगवान विश्वकर्मा

भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। इनकी ऋद्धि सिद्धि और संज्ञा नाम की तीन पुत्रियां थीं । जिनमें से ऋद्धि सिद्धि का विवाह भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान  गणेश से हुआ था । संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्यनारायण से हुआ था । यमराज, यमुना, कालिंदी और अश्वनीकुमार इनकी संताने हैं। पुराणों की मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की तीन पत्नियां थीं जिनका नाम रति, प्राप्ति और नंदी था ।

'प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित'

महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः-
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥16॥

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है।

शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है।

प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। "विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है ।

'विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः' - अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विश्वकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है। वेदों में :- 'विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात' कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए।

ऋग्वेद में विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐं लिखी हुईं हैं । जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञात नहीं हैं । यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है।

भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उद्योगों में भगवान विशवकर्मा की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक वर्ष १७ सितम्बर को श्वम दिवस के रूप मे मनाता हे। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृद्धि के लिए एक संकलप दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है।

दुनिया के पहले इंजीनियर थे भगवान विश्वकर्मा

भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के वास्तुकार के रुप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था । मान्यता है कि एक बार भगवान विश्वकर्मा असुरों से परेशान देवताओं के गुहार पर महर्षि दधीची की हड्डियों से देवाताओं के राजा इंद्र के लिए एक वज्र बनाया था। ये वज्र इतना प्रभावशाली था कि सब असुरों का सर्वनाश हो गया। यहीं कारण है कि भगवान विश्वकर्मा का सभी देवताओं में विशेष स्थान है। विश्वकर्मा ने अपने हाथों से कई संरचनाएं की थीं। माना जाता है कि उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया था। इसके अलावा उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था। इसके अलावा उन्होंने कईयों हथियारों का निर्माण किया था जैसे कि भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड मुख्य हैं। इसके साथ ही उन्होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्पक विमान की भी संरचना की थी। मान्यता है कि रावण के अंत के बाद राम, लक्ष्मण, सीता और अन्य सभी साथी इस विमान पर बैठकर अयोध्या वापस लौटे थे।
(आलेख के तथ्य महाभारत, पुराण और इंटरनेट पर मौजूद सामग्रियों से लिये गये हैं ।)