शारदीय नवरात्र : कब है कलश स्थापना मुहूर्त और क्या है मतलब माता के डोली पर आगमन और हाथी पर गमन का

शारदीय नवरात्र : कब है कलश स्थापना मुहूर्त और क्या है मतलब माता के डोली पर आगमन और हाथी पर गमन का

-- अरूण कुमार सिंह
-- 6 अक्तूबर 2021

इस वर्ष 7 अक्तूबर से प्रारंभ हो रही और 14 अक्तूबर को संपन्न हो रही नवरात्रि महज आठ दिनों की है ।15 अक्टूबर को विजयादशमी (दशहरा) का त्योहार मनाया जाएगा।

दो तिथियां एक साथ

09 अक्टूबर, शनिवार को तृतीया तिथि सुबह 07 बजकर 48 मिनट तक ही रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी, जो कि अगले दिन 10 अक्टूबर (शनिवार) को सुबह 05 बजे तक रहेगी। इस साल दो तिथियां एक साथ लगने के कारण ही नवरात्रि आठ दिन की हो रही है ।

विद्वानों के मुताबिक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य संपत कुमार मिश्र ने बताया कि सात अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि दिन में तीन बजकर 28 मिनट तक है। ऐसे में सूर्योदय से प्रतिपदा तीन बजकर 28 मिनट के भीतर कभी भी कलश स्थापना की जा सकती है। इसके लिए प्रात: छह बजकर 10 मिनट से छह बजकर 40 मिनट तक ( कन्या लग्न-स्वभाव लग्न में)। पुन: 11 बजकर 14 मिनट से दिन में एक-एक बजकर 19 मिनट तक (धनु लग्न-द्विस्भाव लग्न)। इसके साथ ही अभिजित मुहुर्त ( सुबह 11 बजकर 17 मिनट से-12 बजकर 23 मिनट तक)है। ये तीनों मुहूर्त कलश स्थापना के लिए प्रशस्त हैं।

शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा की पूजा-अर्चना की तिथियां

नवरात्र का शुभारंभ 7 अक्टूबर  दिन गुरुवार को हो रहा है। इस दिन प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री का पूजन होगा। नवरात्र 14  अक्टूबर दिन गुरुवार तक चलेगा। दिनांक 11 अक्टूबर दिन सोमवार को माता के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना के बाद गोधि बेला में बेलवरण पूजा होगी। 12 अक्टूबर दिन मंगलवार को मां के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा और ध्यान के बाद  नवपत्रिका स्नान-पूजन के बाद आदिशक्ति माता दुर्गा के पट खुलेंगे। जबकि दुर्गाष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन माता दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा और ध्यान होगी। इसी दिन निशा काल में रात्रि 11:42 बजे संधिबलि की पूजा होगी। 14 अक्टूबर दिन गुरुवार को महानवमी का व्रत होगा। इस दिन माता के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा के बाद नवरात्र का हवन किया जाएगा। जबकि दुर्गोत्सव का महापर्व दशहरा और विजयादशमी का त्यौहार 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसी दिन शमी पूजन व अपराजिता पूजन के बाद माता क प्रतिमाओं का विसर्जन होगा।

पंचम और छठे रूप की पूजा एक ही दिन

देवी के पंञ्चम रूप स्कन्दमाता तथा षष्ठ रूप कात्यायनी का पूजन एक ही दिन (11अक्टूबर ) किया जायेगा। अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर को किया जायेगा। श्री मिश्र ने बताया कि 'कलौ चंडीविनायकौ' अर्थात कलियुग में चण्डी (दुर्गा जी) एवं विनायक (गणेश जी) की पूजा विशेष फलदायी होती है। इसीलिए उत्तर भारत में नवरात्र के अवसर पर देवीजी की पूजा तथा दक्षिण भारत में गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेशजी की पूजा विशेष रूप से आयोजित होती है।

माताजी के आगमन और गमन का अर्थ

शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता।
गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे। नौकायां सर्वसिद्धि स्यात डोलायां मरण ध्रुवम्।।

नवरात्रि में माता की सवारी का विशेष महत्व होता है। देवीभाग्वत पुराण में भी इस बारे में बताया गया है। देवी भाग्वत पुराण के अनुसार, सोमवार या रविवार को नवरात्र की शुरुआत होने पर दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं, जबकि शनिवार और मंगलवार के दिन से नवरात्रि शुरू होने पर माता अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं। वहीं गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि का पर्व शुरू होने पर माता डोली पर सवार होकर आती हैं। इस साल शरद नवरात्रि का पर्व गुरुवार से शुरू हो रहा है। इस वजह से माता रानी इस साल 'डोली' पर सवार होकर आएंगी।

डोली पर माता का होगा आगमन, हाथी पर विदा होंगी

माना जाता है कि जब कभी माता डोली पर सवार होकर आती हैं तो इसे स्त्री शक्ति को मजबूती मिलने के रूप में देखा जाता है। लेकिन इसके साथ ही ये भी मान्यता है कि ऐसा होने पर लोगों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । कुछ विद्वानों का मानना है कि माता का डोली पर आगमन शुभ नहीं है । इससे‌ संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका बनी रहती है ।

माता का डोली पर आना राजनीतिक उथल-पुथल का संकेत है । डोली में माता का आगमन के संबंध में माना जाता है कि यह समय देश दुनिया और आमजनों के लिए शुभ नहीं रहेगा। इसके अलावा माता के डोली में आगमन से पृथ्वी के कई हिस्सों में बड़ी राजनीतिक हलचल होने के साथ ही भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में जन धन की हानि होने की भी संभावना रहेगी।

ज्योतिषाचार्य अनीत शुक्ल के मुताबिक दशमी शुक्रवार को होने से माता का प्रस्थान हाथी पर हो रहा है, जो शुभ फलदायक रहेगा। यह समस्त व्यक्तियों में सुख-समृद्धि और सुवृष्टि का सूचक है। हांलाकि मां का हाथी पर विदा होना अत्यधिक वर्षा का सूचक है। इसमें कहीं-कहीं काफी ज्यादा बारिश होने की संभावना है। कहीं कहीं बाढ़ भी आ सकती है ।

शारदीय नवरात्र में किस दिन किस देवी की होगी पूजा-अर्चना

07 अक्तूबर- मां शैलपुत्री पूजा व घटस्थापना
08 अक्तूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
09 अक्तूबर- मां चंद्रघंटा पूजा
10 अक्तूबर- मां कुष्मांडा पूजा
11 अक्तूबर- मां स्कंदमाता और मां कात्यायनी पूजा
12 अक्तूबर- मां कालरात्रि पूजा
13 अक्तूबर- मां महागौरी पूजा
14 अक्तूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा